पर्यटन
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देश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बसा छत्तीसगढ़ राज्य चकाचौंध भरी दुनिया के लोगों की नजर में भले ही सबसे पिछड़ा इलाका हो लेकिन प्रकृति, पर्यटन व सौंदर्य प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। वैसे तो पिछड़ेपन का ही परिणाम है कि यहाँ नक्सलवाद अपने चरम पर है लेकिन प्रकृति की गोद में बसे दर्शनीय स्थल नक्सल गतिविधियों से मुक्त है। राज्य के उत्तरी छोर पर सरगुजा जिले के मैनपाट में आप मिनी तिब्बत का नजारा देख सकते हैं। रायपुर से बस्तर तक का तीन सौ किलोमीटर का सफर दर्शनीय स्थलों से भरपूर है।
यहाँ लोक संस्कृति, परंपरा, धार्मिक पर्यटन, बस्तर हाट (बाजार), मुर्गा लड़ाई, घोटुल पर्यटन के आकर्षण हैं जो देश के अन्य किसी पर्यटन स्थल पर नहीं देखे जा सकते। छत्तीसगढ़ का भू-भाग, पुरातात्विक, सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है फिर चाहे वह कांकेर घाटी हो, विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट का जलप्रपात हो या फिर कुटुंबसर की गुफाएं ही क्यों न हों। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर सदाबहार लहलहाते सुरम्य वन, जनजातियों का नृत्य-संगीत और घोटुल जैसी परंपरा यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।
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चित्रकोट जलप्रपात: चित्रकोट जलप्रपात की खूबसूरती को निहारने के लिए राज्य के पर्यटन विभाग ने जबरदस्त इंतजाम किए हैं। जलप्रपात का नजारा चूँकि रात में ज्यादा आकर्षक होता है इसलिए रुकने के लिए विभाग ने ‘हट’ भी बनाए हैं, जिनका न्यूनतम किराया 24 घंटे का एक हजार रुपए है। इन हाटों में पर्यटकों के लिए तरह-तरह की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। त्रेतायुग में राम के वनगमन का रास्ता भी इसी भू-भाग से गुजरता है। जिस दंडक वन से राम गुजरे थे उसे अब दंडकारण्य कहा जाता है। वैसे भी खूबसूरती प्रायः दुर्गम स्थानों पर ही अपने सर्वाधिक नैसर्गिक रूप में पाई जाती है। कारण बड़ा साफ है, ये दुर्गम स्थान प्रकृति के आगोश में होते हैं। प्रकृति के रचयिता रंगों को मनमाफिक रंग से भर खूबसूरती की मिसाल गढ़ते हैं। यह खूबसूरती बस्तर की घाटियों में देखी जा सकती है जो हिमाचल की भांति हैं।
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तीरथगढ़ प्रपात: जगदलपुर से 35 किलामीटर की दूरी पर स्थित यह मनमोहक जलप्रपात पर्यटकों का मन मोह लेता है। पर्यटक इसकी मोहक छटा में इतने खो जाते हैं कि यहाँ से वापिस जाने का मन ही नहीं करता। मुनगाबहार नदी पर स्थित यह जलप्रपात चन्द्राकार रूप से बनी पहाड़ी से 300 फिट नीचे सीढ़ी नुमा प्राकृतिक संरचनाओं पर गिरता है, पानी के गिरने से बना दूधिया झाग एवं पानी की बूंदों का प्राकृतिक फव्वारा पर्यटकों को मन्द-मन्द भिगो देता है। करोड़ो वर्ष पहले किसी भूकंप से बने चन्द्र-भ्रंस से नदी के डाउन साइड की चट्टाने नीचे धसक गई एवं इससे बनी सीढ़ी नुमा घाटी ने इस मनोरम जलप्रपात का सृजन किया होगा।
सैर करने के लिए सबसे उचित समय
नवंबर से जून
(किसी को बरसात के मौसम में यात्रा करने से बचने से बचना चाहिए, क्योंकि मानसून भारी वर्षा लेती है और बाढ़ के कारण गुफाएं बंद हो जाती हैं।)
- इतिहास यह है कि बस्तर ‘दंडकारण्य’, पौराणिक वन है, जिसके माध्यम से भगवान राम अपने निर्वासन के दौरान गुजरे थे।
- वाल्मीकि के आश्रम की पहचान बस्तर में शोधकर्ताओं ने की है।
- बस्तर को ‘छत्तीसगढ़ का कश्मीर’ भी माना जाता है।