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अर्थव्यवस्था

बस्तर का मुख्य फसल  धान है | खरीफ सीजन के दौरान धान मुख्य रूप से उगाया जाता है क्योंकि बारिश वाली फसल में 2.39 लाख हेक्टेयर क्षेत्र होता है लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में इस फसल की उत्पादकता 08.53 क्विंटल / हेक्टेयर है। बस्तर जिले में सिंचित क्षेत्र (1.67%) और उर्वरक उपयोग (4.6 किलोग्राम / हेक्टेयर) बहुत कम है, जो फसल को पर्याप्त पोषक तत्व प्रदान करने के लिए अपर्याप्त है| मक्का दलहन मुख्यतः रबी फसल है |

बस्तर में आजीविका का पैटर्न परंपरा द्वारा निर्धारित किया जा रहा है। आज भी, कृषि प्रथा पारंपरिक हैं। लकड़ी के हल का उपयोग अधिक  है जबकि लोहे के हल की संख्या नगण्य है। 

ट्रैक्टरों की संख्या नगण्य है जबकि बैल गाड़ियां सभी व्यापक हैं। पारंपरिक कृषि उपकरणों के उपयोग ने कृषि के उत्पादन को कम कर दिया है। यहां उगाई गई खरीफ फसलें  धान, उड़द, अरहर, ज्वार और मक्का हैं। रबी फसलों में  तिल, अलसी , मूंग, सरसों और चना  शामिल हैं। वन उत्पादन और अन्य वन-संबंधित कार्यों की संग्रह और बिक्री कम कृषि आय की पूरक है।

अपने जल संसाधनों में असाधारण रूप से भाग्यशाली, इस क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है और अपर्याप्त इलाके के कारण तेजी से चलती है। वर्षा जल संचयन की संभावना है|

बस्तर जिले की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार , कृषि और वनोपज संग्रहण है । कृषि में प्रमुख रूप से धान ,मक्का की फसल का और गेहू,ज्वार,कोदो कुटकी ,चना ,तुअर ,उड़द ,तिल ,राम तिल ,सरसों सहायक रूप से उत्पादन किया जाता है । कृषि के अलावा पशुपालन , कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन भी सहायक भूमिका निभाते हैं ।

वनोपज संग्रहण यहाँ के ग्रामीणों के जीवन उपार्जन के प्रमुख श्रोतों में से एक है । वनोपज संग्रहण में कोषा (तसर), तेंदू पत्ता , लाख , धुप , साल बीज , इमली , अमचूर , कंद , मूल , औषधियां , प्रमुख हैं।पत्थर , गिट्टी , मुरुम , फर्शी पत्थर , रेत का खनन भी अर्थ्वाव्स्था के सहयोगी तत्त्व हैं ।